Poems

10/07/2020

9/7/2020

11/07/2020

12/07/2020

13/07/2020

कही अनकही….

इंसान की ख्वाहिशों का

बढ़ता हुआ ये वज़न है

बरसों तलक़ सब सहा है

इस कुदरत को मेरा नमन है 🙏

राहें भी सूनी पड़ी हैं

धरती भी थोड़ी सी नम है

हवाओं की रफ़्तार दूनी

कदमों की रफ़्तार कम है

इस कुदरत को मेरा नमन है 🙏

दुनिया से दूरी बनी है

घर में मुकम्मल वतन है

खुद को समझने का मौक़ा

अब तो मिला कम से कम है

इस कुदरत को मेरा नमन है 🙏

सुंदर सुनहरा सवेरा

पंछी भरा अब गगन है

कोयल की बोली सुनो ना

अपनी ही धुन में मगन है

इस कुदरत को मेरा मेनन है 🙏

तितली भी अंगना में आई

फूलों में उसका मरम है

देखो खुले आसमाँ को

नीला सा कोईरतनहै

इस कुदरत को मेरा नमन है 🙏

DrRatna Mishra🌺

29.03.2020

कही अनकही

ये ऐसी क्यूँ है ज़िंदगी

ये वैसी क्यू हैं ज़िंदगी

बेकार के सवालों में

उलझ गई है ज़िंदगी

ये मेरा है , वो मेरा है

दिमाग़ का बखेड़ा है

ना लेके तुम ही आए थे

ना लेके तुम ही जाओगे

ये सच ना तुम समझ सके

अंजाम भी भुगत चुके

इंसान थे कभी मगर

हैवान अब तुम बन चुके

ख़ुदा को तुमने बेचा है

झूठी तुम्हारी बन्दगी

किसी जान पे रहम नहीं

तो ख़ाक है ये ज़िंदगी

ये ऐसी क्यूँ है ज़िंदगी

ये वैसी क्यूँ है ज़िंदगी

घिसे पिटे सवालों में

उलझ गई है ज़िंदगी…..

DrRatna Mishra

(15.06.2019)

पापा मेरे ♥️…..👆🏽🙏

कहते थे मेरे साथ थोड़ा समय बिताओ

मुझे घर आकर मिलकर जाओ

देखो अधिक दिन नहीं रहूँगा

और फ़िर ये बातें भी नहीं करूँगा

जो याद रह जाएँगे..ऐसे पल बिता कर जाओ

मुझे मिलकर जाओ

पापा कहते थे मेरी उम्र हो गई है

थोड़ी थोड़ी सी सुध खो गई है

कुछ मेरी सुन लेना..कुछ अपनी सुनाकर जाओ

मुझे मिलकर जाओ

पापा कहते थे तुम्हें याद बहुत करता हूँ

रोज़ तुम्हारे आने की राह तकता हूँ

कभी चुपचाप आकर..मुझे अचंभित भी कर जाओ

मुझे मिलकर जाओ

अपने आशीर्वाद से हमें भर गए

पापा ही हमें अचंभित कर गए

शांतिपूर्वक सबसे अलविदा कर गए

हम समय को कोसते रह जाएँगे

पापा मेरे अब लौटकर नहीं आएँगे

हम सिर्फ़ सोचते रह जाएँगे

क्या पापा अब कभी बुलाएँगे

कि मेरे साथ थोड़ा समय बिताओ

मुझे मिलकर जाओ ..

प्रणाम और प्यार आपकी प्रिय बेटी रत्ना का 🙏

(22.09.2020)

पापा आप सदा हमारे हृदय में रहेंगे🙏

कही अनकही…

दिन सिमटते जा रहे शामें भी मुक़्तसर हैं

वक़्त के इस फ़लसफ़े को सोचते अक्सर हैं

क़ाश ऐसे ग़म सिमटते

लोग बँटते ना भटकते

टूटकर यूँ ना बिखरते..

रिश्ते कच्ची डोर के जो , छूटते अक्सर हैं..

वक़्त के इस फ़लसफ़े को सोचते अक्सर हैं…

काश ऐसा रोज़ होता

मैं ही तेरी खोज होता

ये भी होता वो भी होता

हम गुज़रती ज़िंदगी को टोकते अक्सर हैं

वक़्त के इस फ़लसफ़े को सोचते अक्सर हैं ..

दिन सिमटते जा रहे, शामें भी मुक़्तसर हैं..

वक़्त के इस फ़लसफ़े को सोचते अक्सर हैं

DrRatna Mishra

20.11.2020

कही अनकही….

ना जाने मेरे कौन हो तुम…

पालक हो❤️पिता हो❤️परिवार हो❤️घरबार हो❤️मित्र हो❤️सुचरित्र हो❤️प्रीत हो❤️मनमीत हो❤️

एक बहता हुआ संगीत हो तुम❤️

ना जाने मेरे कौन हो तुम …

रक्षक हो❤️शिक्षक हो❤️सहज हो❤️सद्भावना हो❤️साथी हो❤️सारथी हो❤️मान हो❤️सम्मान हो❤️

मेरी भूलों का समाधान हो तुम❤️

ना जाने मेरे कौन हो तुम….

मन्नत हो❤️जन्नत हो❤️वरदान हो❤️अभिमान हो❤️अबोध हो❤️अनजान हो❤️वेद हो❤️विज्ञान हो❤️

मेरे चिंतन का ध्यान हो तुम❤️

ना जाने मेरे कौन हो तुम…

आदत हो❤️स्वागत हो❤️इच्छा हो❤️परीक्षा हो❤️पुण्य हो❤️प्रसाद हो❤️अवशेष हो❤️अवतार हो❤️

मेरे सत्कर्मों का पुरस्कार हो तुम❤️

ना जाने मेरे कौन हो तुम….

प्रवेश हो❤️प्रयास हो❤️आग़ाज़ हो❤️अंजाम हो❤️अहसास हो❤️आभास हो❤️तमस् हो❤️उजास हो❤️

मेरे होने का विश्वास हो तुम❤️

ना जाने मेरे कौन हो तुम….

ना जाने मेरे कौन हो तुम…..

DrRatna Mishra

24.11.2020

कही अनकही…

ये कैसी जिज्ञासा है …

ये कैसी जिज्ञासा है …

जानना तो सब कुछ है

मानने का मन नहीं

जागरूक जीवन की

अनकही अभिलाषा है

ये कैसी जिज्ञासा है

जीतने की ख़ुशी चाहिए

हारने का ग़म नहीं

सोच के विचारने की

अनोखी परिभाषा है

ये कैसी जिज्ञासा है

हर विषय में तर्क है

सही ग़लत पता नहीं

ख़ुद को बहलाने की

अनसुनी दिलासा है

ये कैसी जिज्ञासा है

ये कैसी जिज्ञासा है …..

DrRatna Mishra

26.11.2020

कही अनकही

कुछ तो हुआ ज़रूर है ..

आख़िर को क्या क़सूर है

मुँह छुपाए घूमते..

हाज़िर हो या हुज़ूर है

कुछ तो हुआ ज़रूर है

अब दूर से है वास्ता

बदल गई है दासतां

अपनाइयत के दौर का

बदल हुआ दस्तूर है

कुछ तो हुआ ज़रूर है

क्यू शोर ना मचा रहे

ख़ुद को सभी बचा रहे

इंसानियत की शक़्ल में

आया नया फ़ितूर है ..

कुछ तो हुआ ज़रूर है ..

आख़िर को क्या क़सूर है..

मुँह छुपाए घूमते..

हाज़िर हो या हुज़ूर है ..

कुछ तो हुआ ज़रूर है

DrRatna mishra

28.11.2020

कही अनकही…

दिन गुजरते जा रहे ,शामें भी मुक़्तसर हैं

वक़्त के इस फ़लसफ़े को सोचते अक्सर हैं

क़ाश ऐसे ग़म सिमटते

लोग बँटते ना भटकते

टूटकर यूँ ना बिखरते

रिश्ते कच्ची डोर के ,जो छूटते अक्सर हैं ..

वक़्त के इस फ़लसफ़े को सोचते अक्सर हैं

क़ाश ऐसा रोज़ होता

मैं ही तेरी खोज होता

ये भी होता, वो भी होता

हम गुज़रती ज़िंदगी को टोकते अक्सर हैं ..

वक़्त के इस फ़लसफ़े को सोचते अक्सर हैं

DrRatna Mishra

26.11.2020

कही अनकही

बुलाती है

रुलाती है

सताती है बेसबब लेकिन,

सिखाती है बहुत कुछ ये

मगर फ़िर ज़िंदगी ही है

कहाँ आएँ

किधर जाएँ

कि क़िस्मत आज़माएँ हम..

कश्मकश में गुज़रती है

मगर फिर ज़िंदगी ही है

जो आज मेरा ,

वो कल था तेरा

सभी वाक़िफ़ हक़ीक़त से,

बहुत शिकवे ज़माने से

मगर फ़िर ज़िंदगी ही है

जो आती है

वो जाती है

रवायत है ये साँसों की

ना जाने कब ठहर जाए,

मगर फ़िर ज़िंदगी ही है

सिखाती है बहुत कुछ ये

मगर फ़िर ज़िंदगी ही है

DrRatna mishra

दिल से ये राब़ता पुराना है

बस बीच में गया ज़माना है ..

दिल को दिल से मिला के रखना

जो छूट जाए, वो महज़ फ़साना है ..

कौन करता है दर गुज़र महफ़िल

जहाँ हर जुस्तजू का ठिकाना है..

मेरे मालिक मुझे सलामत रखना

मुझे ख़ुद को भी आज़माना है..

जो जी गया तो जान जाएगा

कि ज़िंदगी को बहुत सिखाना है..

देकर ये पैग़ाम उसने भेजा है

उसकी बाबत सुकून पाना है..

बेफ़िक्र हो जा मेरे ताल्लुक़ में

जहाँ से तेरा आना ,तेरा जाना है..

ज़िंदगी इस तरह भी जी जाए

सारे ज़ख्मों को भूल जाना है..

दिल से ये राबता पुराना है

बीच में आ गया ज़माना है…

DrRatna Mishra

कही अनकही..

जिस्म कच्चे हैं , रूह सच्ची है

क़िस्मत को क्या कहें ..अब भी बच्ची है

इतनी फ़ितरत से क्यूँ भरा है मन

दिल जो बोले तो बात सच्ची है ..

थक गए जोश से भरे थे जो

ग़र वो ठहरे तो बात पक्की है ..

ऐसे कहने में मत कभी आना

राज़ गहरे हैं बात हलकी है ..

यूँ उबलकर जो ख़ून बह जाए

यूँ समझना कि बात पल की है ..

उसके माज़ी पर फ़िक्र ना करना

गुज़र चुकी जो शाम, कल की है ..

बेसबब इम्तिहान से गुरेज़ ना कर

आगे बढ़ने से बात बनती है ..

जब लबों पे नाम सिर्फ़ तेरा हो

मेरे मुस्तकबिल से मेरी ठनती है ..

DrRatna Mishra

कही अनकही

जो जश्न का दिन था वही अब प्रश्न का दिन हो गया

वो अजाना अन्नदाता साज़िशों में खो गया

रोपता था बीज जो बस अन्न और ईमान के,

वो बेसबर हो बेवजह नापाक फसलें बो गया

DrRatna Mishra

(The day of celebration, now is questioned day,

That unknown farmer , drenched & drowned in conspiracy ….)

कही अनकही

कही थीं हमने जो बातें

वो अब भी अनकही सी हैं

दिलों के रास्तों के संग

कहीं संकरी गली सी है

वहाँ ऐसे मकां भी हैं

जहाँ वक़्ती नमी ठहरी

झरोखे तो खुले लेकिन

हवाओं की कमी सी है

बदलता है जो अब मौसम

ज़रा खुलके बरसने दो

चमकती बिजलियों में कुछ

हमारी रौशनी भी है

कभी छूने से भी अक्सर

हमारे ख़्वाब जलते हैं

बिखरती ख़्वाहिशों में भी

बड़ी दीवानगी से है

ज़रा नज़दीक से देखो

ये मंजर कुछ नया सा है

कि ठहरे से हुए पानी में

कैसी खलबली सी है…

फ़क़त इतना समय देना

कि ख़ुद को ढूँढ पाएँ हम

तड़पते भीगते मन में

ये कैसी तिशनगी सी है…

कही थीं हमने जो बातें

वो अब भी अनकही सी हैं

DrRatna Mishra

कही अनकही…अंतरराष्ट्रीय नारी दिवस की शुभकामनाएँ

(This is a theme song for serial ‘kahi ankahi’)

नारी शक्ति तो सिमट गई,

घरद्वार देह में लिपट गई..

किन्तु ईश्वर ने देवी कह,

तुझको भरपूर दिया सम्मान ..

नारी तुझको शत शत प्रणाम🙏

जब जन्म हुआ है कन्या का,

तब घर प्रायः सम्पन्न हुआ..

किन्तु भेदभाव के तीरों को,

तुमने साधा बनकर कमान ..

नारी तुझको शत शत प्रणाम🙏

ये सत्य नहीं क्या मिथ्या है

जहां सीता और अहिल्या है

परित्याग और परनिंदा का

कर्तव्य नाम से किया बखान..

नारी तुझको शत शत प्रणाम🙏

DrRatna Mishra

कही अनकही ..

अनसुने से फ़लसफ़े

हिमायतें पता नहीं

ये राबता नया नया

रिवायतें पता नहीं !!

मैं फ़िक्र में जिया नहीं

हिदायतें पता नहीं

ये राबता नया नया

रिवायतें पता नहीं !!

मैं ख़र्च हर लम्हा करूँ

ये राबता नया नया

रिवायतें पता नहीं !!

किफ़ायतें पता नहीं

गिले बहुत सुने मगर

शिकायतें पता नहीं

ये राबता नया नया

रिवायतें पता नहीं !!

DrRatna Mishra

कही अनकही

बहते पानी में कफ़न का, ये क्या सिलसिला हुआ

गंगा में कौन इंसानियत बहाकर चला गया

किस किनारे पर जा लगा, किसी को ख़बर नहीं

मुखाग्नि ही मिली, दफ़न किया गया

गंगा में कौन इंसानियत बहाकर चला गया

ख़ुदा भी देखकर ये, शर्मिंदा ज़रूर है

इंसान की दुआओं का, मरहम चला गया

गंगा में कौन इंसानियत बहाकर चला गया

मैं अब भी तप रहा हूँ, धुआँ धुआँ होकर

जाने कौन सी लकड़ी से, वो जलाकर चला गया

गंगा में कौन इंसानियत बहाकर चला गया

DrRatna Mishra

कही अनकही..

क्या इतने गुनहगार हम

साँसों से तार तार हम

ज़िंदगी के मोल से

कैसे हुए बेज़ार हम…

ये आग जो दहक गई

तमाम चेहरों की चमक गई

कुछ इस तरह बिखर गए

ना घर के हैं ना द्वार हम

ज़िंदगी के मोल से

कैसे हुए बेज़ार हम…

ज़मीन कम लिहाफ़ कम

उम्मीदों के हिसाब कम

सवाल हैं क़तारों में

ना दे सकें जवाब हम

ज़िंदगी के मोल से

कैसे हुए बेज़ार हम…

क्या सब सिमट ही जाएगा

क्या कोई पलट के आएगा

यूँ सुन के अनसुना करें

जैसे कि इश्तहार हम..

ज़िंदगी के मोल से

कैसे हुए बेज़ार हम….

DrRatna Mishra

कही अनकही ..

मेरे मन तू ग़र इंद्र होता

तो फिर काहे का द्वन्द होता ..

इंद्रियों को उँगलियों पर नचाता

हवा पानी फ़िर मर्ज़ी से बहाता

सुबह जागता तो सहर होती

मेरी इच्छा से दोपहर होती

शाम को बाँसुरी बजवाता

तो रात चाँद की किरणों को नचाता

भूख और प्यास को परे करके

मानवता से इस संसार को सजाता

दुख का दानव भी मंद होता

कुछ ऐसा जीवन का छंद होता

तो फिर काहे का द्वन्द होता…

मेरे मन तू ग़र इंद्र होता

मेरे मन तू ग़र इंद्र होता..

DrRatna Mishra

कही अनकही..

शब्दों को मिला ख़िताब

तो एक किताब हो गई .. मासूमियत थी पहले

अब इंक़लाब हो गई ..

दोस्तों के संग बैठें, कहीं मिलकर

थोड़ा हँस लें, कभी रो लें खुलकर

तनहाइयों से ज़िंदगी

अज़ाब हो गई

शब्दों को मिला ख़िताब

तो एक किताब हो गई ..

मेरे शब्दों को मिला ख़िताब

तो एक किताब हो गई ..

DrRatna Mishra

कही अनकही..

बड़ी विचारी दुविधा है ये, ये प्रश्न काल पर भारी है,

महाविनाश की बेला में, द्रौपदी निःशब्द सी नारी है।

हे पांचाली दोष तुम्हारे, अब भी स्मृतिधारी हैं।

जिन शब्दों ने कुरूवंश की सम्मानित बेल उतारी है,

भूल गई क्यूँ उन कर्मों की, तू भी उतनी अधिकारी है।

हे पांचाली! दोष तुम्हारे, अब भी स्मृतिधारी हैं।

बिखर गईं वो माताएँ, काल ने जिनकी गोद उजाड़ी है,

कितनों का मिटा सुहाग, भला ये युद्ध कहाँ हितकारी है।

हे पांचाली! दोष तुम्हारे, अब भी स्मृतिधारी हैं।

यदि बोया बीज बबूल, तो फिर आम कहाँ फलिहारी है।

हे पांचाली! दोष तुम्हारे, अब भी स्मृतिधारी हैं।

निज सखी बना कर धन्य किया, वो भले कृष्ण गिरधारी हैं।

DrRatna Mishra

चमकते सितारे सी, सुबह के उजियारे सी.. शक्कर के पारे सी सुहाती है जूही

पिता का सम्मान ,माँ का अभिमान.. भाई बहनों का प्यार निभाती है जूही

दोस्तों की जान , गुणों की है खान.. क़िस्से जब तमाम सुनाती है जूही

पक्की है धुन की , सच्ची है मन की.. सोच ले अगर तो कर जाती है जूही

इतनी वो प्यारी है, सबकी दुलारी है .. सबके दिलों में घर बनाती है जूही

बचपन का प्यार, उसका बन गया संसार .. जब विशाल के जैसी बन जाती है जूही

ढेरों आशीष पाये , हर पल वो जगमगाये .. जीवन के गीत गुनगुनाती है जूही

जीवन के गीत गुनगुनाती है जूही

DrRatna Mishra

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