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12/07/2020



13/07/2020












कही अनकही….
इंसान की ख्वाहिशों का
बढ़ता हुआ ये वज़न है
बरसों तलक़ सब सहा है
इस कुदरत को मेरा नमन है 🙏
राहें भी सूनी पड़ी हैं
धरती भी थोड़ी सी नम है
हवाओं की रफ़्तार दूनी
कदमों की रफ़्तार कम है
इस कुदरत को मेरा नमन है 🙏
दुनिया से दूरी बनी है
घर में मुकम्मल वतन है
खुद को समझने का मौक़ा
अब तो मिला कम से कम है
इस कुदरत को मेरा नमन है 🙏
सुंदर सुनहरा सवेरा
पंछी भरा अब गगन है
कोयल की बोली सुनो ना
अपनी ही धुन में मगन है
इस कुदरत को मेरा मेनन है 🙏
तितली भी अंगना में आई
फूलों में उसका मरम है
देखो खुले आसमाँ को
नीला सा कोई ‘रतन’ है
इस कुदरत को मेरा नमन है 🙏
DrRatna Mishra🌺
29.03.2020









कही अनकही …
ये ऐसी क्यूँ है ज़िंदगी
ये वैसी क्यू हैं ज़िंदगी
बेकार के सवालों में
उलझ गई है ज़िंदगी
ये मेरा है , वो मेरा है
दिमाग़ का बखेड़ा है
ना लेके तुम ही आए थे
ना लेके तुम ही जाओगे
ये सच ना तुम समझ सके
अंजाम भी भुगत चुके
इंसान थे कभी मगर
हैवान अब तुम बन चुके
ख़ुदा को तुमने बेचा है
झूठी तुम्हारी बन्दगी
किसी जान पे रहम नहीं
तो ख़ाक है ये ज़िंदगी
ये ऐसी क्यूँ है ज़िंदगी
ये वैसी क्यूँ है ज़िंदगी
घिसे पिटे सवालों में
उलझ गई है ज़िंदगी…..
DrRatna Mishra
(15.06.2019)

पापा मेरे ♥️…..👆🏽🙏
कहते थे मेरे साथ थोड़ा समय बिताओ
मुझे घर आकर मिलकर जाओ
देखो अधिक दिन नहीं रहूँगा
और फ़िर ये बातें भी नहीं करूँगा
जो याद रह जाएँगे..ऐसे पल बिता कर जाओ
मुझे मिलकर जाओ …
पापा कहते थे मेरी उम्र हो गई है
थोड़ी थोड़ी सी सुध खो गई है
कुछ मेरी सुन लेना..कुछ अपनी सुनाकर जाओ
मुझे मिलकर जाओ …
पापा कहते थे तुम्हें याद बहुत करता हूँ
रोज़ तुम्हारे आने की राह तकता हूँ
कभी चुपचाप आकर..मुझे अचंभित भी कर जाओ
मुझे मिलकर जाओ …
अपने आशीर्वाद से हमें भर गए
पापा ही हमें अचंभित कर गए
शांतिपूर्वक सबसे अलविदा कर गए
हम समय को कोसते रह जाएँगे
पापा मेरे अब लौटकर नहीं आएँगे
हम सिर्फ़ सोचते रह जाएँगे
क्या पापा अब कभी बुलाएँगे
कि मेरे साथ थोड़ा समय बिताओ
मुझे मिलकर जाओ ..
प्रणाम और प्यार आपकी प्रिय बेटी रत्ना का 🙏
(22.09.2020)

कही अनकही…
दिन सिमटते जा रहे शामें भी मुक़्तसर हैं
वक़्त के इस फ़लसफ़े को सोचते अक्सर हैं
क़ाश ऐसे ग़म सिमटते
लोग बँटते ना भटकते
टूटकर यूँ ना बिखरते..
रिश्ते कच्ची डोर के जो , छूटते अक्सर हैं..
वक़्त के इस फ़लसफ़े को सोचते अक्सर हैं…
काश ऐसा रोज़ होता
मैं ही तेरी खोज होता
ये भी होता वो भी होता
हम गुज़रती ज़िंदगी को टोकते अक्सर हैं
वक़्त के इस फ़लसफ़े को सोचते अक्सर हैं ..
दिन सिमटते जा रहे, शामें भी मुक़्तसर हैं..
वक़्त के इस फ़लसफ़े को सोचते अक्सर हैं
DrRatna Mishra
20.11.2020

कही अनकही….
ना जाने मेरे कौन हो तुम…
पालक हो❤️पिता हो❤️परिवार हो❤️घरबार हो❤️मित्र हो❤️सुचरित्र हो❤️प्रीत हो❤️मनमीत हो❤️
एक बहता हुआ संगीत हो तुम❤️
ना जाने मेरे कौन हो तुम …
रक्षक हो❤️शिक्षक हो❤️सहज हो❤️सद्भावना हो❤️साथी हो❤️सारथी हो❤️मान हो❤️सम्मान हो❤️
मेरी भूलों का समाधान हो तुम❤️
ना जाने मेरे कौन हो तुम….
मन्नत हो❤️जन्नत हो❤️वरदान हो❤️अभिमान हो❤️अबोध हो❤️अनजान हो❤️वेद हो❤️विज्ञान हो❤️
मेरे चिंतन का ध्यान हो तुम❤️
ना जाने मेरे कौन हो तुम….
आदत हो❤️स्वागत हो❤️इच्छा हो❤️परीक्षा हो❤️पुण्य हो❤️प्रसाद हो❤️अवशेष हो❤️अवतार हो❤️
मेरे सत्कर्मों का पुरस्कार हो तुम❤️
ना जाने मेरे कौन हो तुम….
प्रवेश हो❤️प्रयास हो❤️आग़ाज़ हो❤️अंजाम हो❤️अहसास हो❤️आभास हो❤️तमस् हो❤️उजास हो❤️
मेरे होने का विश्वास हो तुम❤️
ना जाने मेरे कौन हो तुम….
ना जाने मेरे कौन हो तुम…..
DrRatna Mishra
24.11.2020

कही अनकही…
ये कैसी जिज्ञासा है …
ये कैसी जिज्ञासा है …
जानना तो सब कुछ है
मानने का मन नहीं
जागरूक जीवन की
अनकही अभिलाषा है
ये कैसी जिज्ञासा है …
जीतने की ख़ुशी चाहिए
हारने का ग़म नहीं
सोच के विचारने की
अनोखी परिभाषा है
ये कैसी जिज्ञासा है …
हर विषय में तर्क है
सही ग़लत पता नहीं
ख़ुद को बहलाने की
अनसुनी दिलासा है
ये कैसी जिज्ञासा है …
ये कैसी जिज्ञासा है …..
DrRatna Mishra
26.11.2020

कही अनकही…
कुछ तो हुआ ज़रूर है ..
आख़िर को क्या क़सूर है
मुँह छुपाए घूमते..
हाज़िर हो या हुज़ूर है
कुछ तो हुआ ज़रूर है …
अब दूर से है वास्ता
बदल गई है दासतां
अपनाइयत के दौर का
बदल हुआ दस्तूर है
कुछ तो हुआ ज़रूर है …
क्यू शोर ना मचा रहे
ख़ुद को सभी बचा रहे
इंसानियत की शक़्ल में
आया नया फ़ितूर है ..
कुछ तो हुआ ज़रूर है ..
आख़िर को क्या क़सूर है..
मुँह छुपाए घूमते..
हाज़िर हो या हुज़ूर है ..
कुछ तो हुआ ज़रूर है …
DrRatna mishra
28.11.2020

कही अनकही…
दिन गुजरते जा रहे ,शामें भी मुक़्तसर हैं
वक़्त के इस फ़लसफ़े को सोचते अक्सर हैं …
क़ाश ऐसे ग़म सिमटते
लोग बँटते ना भटकते
टूटकर यूँ ना बिखरते
रिश्ते कच्ची डोर के ,जो छूटते अक्सर हैं ..
वक़्त के इस फ़लसफ़े को सोचते अक्सर हैं …
क़ाश ऐसा रोज़ होता
मैं ही तेरी खोज होता
ये भी होता, वो भी होता
हम गुज़रती ज़िंदगी को टोकते अक्सर हैं ..
वक़्त के इस फ़लसफ़े को सोचते अक्सर हैं …
DrRatna Mishra
26.11.2020
